सामाजिक सुरक्षा’ शब्द का उद्गम औपचारिक रूप से सन् 1935 से माना जाता है, जबकि प्रथम बार अमरीका में सामाजिक सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया। इसी वर्ष बेरोजगारी, बीमारी तथा वृद्धावस्था बीमा की समस्या का समाधान करने के लिए सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का गठन किया गया। तीन वर्ष बाद सन् 1938 में ‘सामाजिक सुरक्षा’ शब्द का प्रयोग न्यूजीलैण्ड में किया गया जब पहली बार बड़े पैमाने पर यह योजना लागू की गयी।
सन् 1941 में अटलांण्टिक चार्टर के अन्तर्गत सभी देशों को उद्योग के सभी क्षेत्रों में सामाजिक सुरक्षा को प्रोत्साहित करने को कहा गया; जिससे श्रमिकों के रहन-सहन के स्तर तथा उनकी आर्थिक दशा में सुधार हो सके।
सन् 1943 में सर विलियम बैवरिज द्वारा एक नयी याजना बनायी गयी। उन्होनें अपनी रिपोर्ट सामाजिक बीमा एवं सम्बन्धित सेवाएं के अन्तर्गत ब्रिटिश जनता को अभाव से मुक्ति दिखाने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं बनाने का सुझाव दिया। इस शब्द का प्रयोग एल.सी.मार्ष द्वारा प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट ‘कनाडा में सामाजिक सुरक्षा’ तथा नेशनल रिसोर्सेज बोर्ड, संयुक्त राज्य अमरीका की रिपोर्ट में भी किया गया, जिसके अन्तर्गत सामाजिक सुरक्षा एवं सामाजिक सहायता का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व केन्द्रीय शासन पर डाला गया।
सामाजिक की परिभाषा
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार ‘‘वह सुरक्षा जो समाज, उचित संगठनों के माध्यम से अपने सदस्यों के साथ घटित होने वाली कुछ घटनाओं और जोखिमों से बचाव के लिए प्रस्तुत करता है, ‘सामाजिक सुरक्षा’ है। ये जोखिमें बीमारी, मातृत्व, आरोग्यता, वृद्धावस्था तथा मृत्यु है। इन संदिग्धताओं की यह विशेषता होती है कि व्यक्ति को अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए नियोक्ताओं द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाये।’’
इस परिभाषा के अनुसार सरकारी नीति में कई सुरक्षात्मक कार्य सम्मिलित होने चाहिए। ऐसी सभी योजनाओं को सामाजिक सुरक्षा में लिया जाना चाहिए जो कर्मचारी को बीमारी के समय आश्वस्त कर सके अथवा जब श्रमिक कमाने योग्य न हो तो उसे लाभान्वित कर सकें तथा उसे पुन: कार्य पर लगाने में सहायक हों।
सर विलियम बैवरिज के अनुसार, ‘‘सामाजिक सुरक्षा योजना एक सामाजिक बीमा योजना है जो व्यक्ति को संकट के समय अथवा उस समय, जब उसकी कमाई कम हो जाय, तथा जन्म, मृत्यु या विवाह में होने वाले अतिरिक्त व्यय की पूर्ति के लिए लाभान्वित करती है।’’
सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम एक सुनियोजित योजना के अन्तर्गत पांच दानवों के विरुद्ध अभियान है। सामाजिक उन्नति के लिए अभाव, अज्ञानता, मलिनता, सुस्ती और बीमारी-इन पांच दानवों से लड़ना सामाजिक सुरक्षा है। इसके लिए सामाजिक बीमा तथा सामाजिक सहायता कार्यक्रम एवं ऐच्छिक बीमा योजनाएं बनायी एवं क्रियान्वित की जाती है। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के अन्तर्गत तीन मूलभूत मान्यताएं है ‘‘नियोजन का उचित स्तर, सर्वांगीण स्वास्थ्य सेवा तथा बच्चों के भत्ते की योजना।’’
इस प्रकार सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम से हमारा आशय यह है कि उससे व्यक्ति को जीवन में कुछ जोखिमों तथा आकस्मिक घटनाओं के भार से सुरक्षा मिलती है। वे भार जो स्वयं वहन करने में असमर्थ होता है, सामाजिक सुरक्षा योजना के माध्यम से वहन कर सकता है। हानि की मात्रा एक प्रकार से समाज के कई लोगों में बंट जाती है। सामान्य तौर से सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में निजी स्तर पर किये गये सुरक्षा कार्य सम्मिलित नही किये जाते।
भारत में सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी सुविधाएं देने के लिए यह अधिनियम बनाये गये है :
- कर्मचारी प्रीविडेण्ट फण्ड अधिनियम, 1952;
- कोयला खान भविष्य निधि एवं विविध उपबन्ध अधिनियम, 1948;
- श्रमिक क्षतिपूर्ति संशोधित, 1984;
- प्रसूति लाभ अधिनियम, 1961;
- राज्य बीमा संशोधित अधिनियम, 1984;
- कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध व्यवस्थाएं अधिनियम, 1952;
- वृद्धावस्था पेन्षन योजना;
- अनुग्रह भुगतान संशोधित अधिनियम, 1984;
- सामाजिक सुरक्षा सर्टीफिकेट, 1982 आदि।
समाजिक सुरक्षा के आवश्यक तत्व
- योजना का उद्देश्य बीमारी की रोकथाम या इलाज करना होना चाहिए अथवा अनिच्छापूर्वक घटित हानि से सुरक्षा के लिए आय की गारण्टी देना जिससे श्रमिक पर निर्भर व्यक्ति लाभान्वित हो सके।
- यह प्रणाली एक निश्चित अधिनियम के अन्तर्गत लागू की जानी चाहिए जो व्यक्तिगत अधिकारों तथा उत्तरदायित्व के प्रति सरकार, अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं, गैर-सरकारी संस्थाओं को सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य करे।
- यह प्रणाली सरकारी, अर्द्ध-सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रशासित की जानी चाहिए।
- सुरक्षा को भली-भांति नियमित करने की दृष्टि से उपलब्ध सुविधाओं के प्रति कर्मचारियों का विश्वास होना आवश्यक है कि आवश्यकतानुसार उन्हें सामाजिक सुरक्षा सेवाओं के अन्तर्गत किये गये प्रावधान उपलब्ध होंगे तथा उनकी किस्म और मात्रा पर्याप्त होगी।
सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का क्षेत्र
- अनिवार्य सामाजिक बीमा।
- ऐच्छिक सामाजिक बीमा के कुछ प्रारूप।
- सरकारी कर्मचारियों के लिए कुछ विशिष्ट योजनाएं जैसे बोनस, प्रोविडेण्ट फण्ड का भुगतान।
- पारिवारिक भत्ता।
- सामाजिक सहायता।
- जन-स्वास्थ्य सेवाएं।
आधुनिक सामाजिक सुरक्षा योजना : (1) सामाजिक सहायता, तथा (2) सामाजिक बीमा का मिश्रण जिसमें विभिन्न जोखिमों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान की जाती है। सर्वव्यापी योजना का होना तथा पर्याप्त सुरक्षा का प्रावधान होना- ये दो बातें इस कार्यक्रम की विशेषता है जिससे सामाजिक सुरक्षा योजना के प्रति श्रमिक आत्मीयता अनुभव करे तथा कठिनाई के क्षणों में इस पर आश्रित रह सके।
सामाजिक सुरक्षा का महत्व
विकसित देशों में सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को देश की गरीबी, बेरोजगारी तथा बीमारी का उन्मूलन करने की दृष्टि से राष्ट्रीय योजना का अभिन्न तथा महत्वपूर्ण अंग माना गया है। निम्नलिखित विचारों से सुरक्षा का महत्व अधिक स्पष्ट हो जाता है :
अ) ‘‘सामाजिक सुरक्षा का दर्शन तथा मूल विचार सामुदायिक आयोजन, सामुदायिक उत्तरदायित्व तथा नागरिकों के कर्त्तव्यों और अधिकारों का सामुदायिक स्तर पर विचार करना है। गरीबी हटाना, अभाव पर विजय तथा व्यक्तियों के रहन-सहन का वांछित स्तर उपलब्ध करना इसके उद्देश्य है। इसका मूल उद्देश्य अधिकांश व्यक्तियों के लिए, यथा सम्भव सभी के लिए तथा प्रत्येक की प्रसन्नता के लिए ऐसा प्रबन्ध करना है, जिससे व्यक्तित्व का विकास हो।’’ -जे. एस. क्लार्क
ब) ‘‘वर्तमान रोजगार, रोजगार तथा कार्य की उचित दशाएं प्राप्त करने और सेवानिवृत्ति के लिए सुरक्षा, आत्म-विकास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सहायता, बेरोजगारी तथा अयोग्यता की स्थिति में आय की निरन्तरता, दुर्घटना के समय व्यक्ति के परिवार की सुरक्षा, अयोग्यता, बीमारी या मृत्यु के समय परिवार की सुरक्षा’’ आदि सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं। -सामाजिक सुरक्षा समिति, सं. रा. अमरीका
स) ‘‘तुम जितने गरीब हो, उतनी ही सामाजिक सुरक्षा की अधिक आवश्यकता तुम्हें होगी। अच्छे स्वास्थ्य से कार्य की क्षमता बढ़ती है। वास्तव में राष्ट्रीय समृद्धि को बढ़ाने के लिए यह एक साधन है। सामाजिक बीमा एक ऐसी छात्र है जो प्रजातन्त्र के उद्देश्य को सही अर्थ में प्रस्तुत करती है तथा प्रगति के मार्ग को प्रशस्त करती है।’’ –बैवरिज
सामाजिक सुरक्षा के उद्देश्य
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के कारण उसको अनेक आवश्यकताओं का सामना करना पड़ता है। वह कभी दूसरों को आश्रय प्रदान करता है तो कभी स्वयं ही उसे दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। आधुनिक यांत्रिक युग में वह अनेक प्रकार की दुर्घटनाओं का शिकार हो सकता है। इन दुर्घटनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाय। संक्षेप में, सामाजिक सुरक्षा के उद्देश्य के अन्तर्गत निम्न तीन तत्वों को सम्मिलित किया जाता है-
- क्षतिग्रस्त व्यक्ति को क्षतिपूर्ति करना,
- क्षतिग्रस्त व्यक्ति के पुनरुत्थान का प्रयास करना, और
- खतरों की रोकथाम के लिए आवश्यक व्यवस्था, करना आदि।
सामाजिक सुरक्षा का क्षेत्र
सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र का निर्धारण तीन तत्वों से होता है-
- सामाजिक बीमा
- सामाजिक सहायता
- सामाजिक सेवा
भारत में यद्यपि सामाजिक सुरक्षा सेवाएं विभिन्न रूपों में प्रदान की जाती है तथापि उनका स्तर अन्य विकसित देशों जैसे यू. के., यू. एस. एस. आर., जर्मनी और जापान की अपेक्षा कहीं नीचा है।
सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में निम्न खतरों से सुरक्षा की योजना सम्मिलित रहती है –
- बीमारी के समय आवश्यक चिकित्सा व्यवस्था,
- बीमारी के समय नगद सहायता,
- प्रसूतिका लाभ एवं चिकित्सा सेवाएं
- रोजगार सम्बन्धी दुर्घटनाओं से लाभ,
- असमर्थता की अवस्था में सहायता,
- निश्चित आयु के पश्चात् वृद्धावस्था में सहायता,
- मृत्यु सम्बन्धी व्यय का भुगतान,
- मृत्यु के बाद परिवार के आश्रितों को सहायता,
- बेरोजगारी भत्ता
सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता
मनुष्य की दो अवस्थायें ऐसी होती है, उसे दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है और सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता पड़ती है –
- बचपन, और
- वृद्धावस्था, इन दो अवस्थाओं के अतिरिक्त भी प्रौढ़ जीवन में वह अनेक प्रकार की कठिनाइयों से घिरा रहता है। इन कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए सुरक्षा अनिवार्य है।
संक्षेप में निम्न कारणों से सामाजिक सुरक्षा अनिवार्य है –
- इससे राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि होती है।
- मानव शक्ति की रक्षा में सहायक है।
- इसके परिणामस्परूप सामाजिक जीवन सुरक्षित एवं सुखद बनता है।
- इससे अनाथ बच्चों को अपनी शिक्षा जारी रखने में सहायता मिलती है।
- बेरोजगारी या काम छूटने की हालत में जीवन निश्चित रहता है।
- स्वास्थ्य लाभ से कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
- राष्ट्रीय समृद्धि में वृद्धि होती है।
- सामाजिक और राष्ट्रीय कर्त्तव्य की दृष्टि से भी यह अनिवार्य है।
- इसके माध्यम से मानव मूल्यों और अधिकारों की रक्षा की जा सकती है।
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