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चित्रकला क्या होता है?भारतीय चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ

Times Darpan
Last updated: 2023-03-28 02:54
By Times Darpan 844 Views
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5 Min Read
चित्रकला

चित्रकला वह कला है जिसमें चित्र के माध्यम से अपने मनोभावों सपनों अनुभूतियों को प्रस्तुत करता है, हृदय की भावनाओं को रेखाओं दृश्य एवं प्रदर्शनकारी कला के विभिन्न रूप के माध्यम से प्रकट करके उन्हें रंगों द्वारा सुन्दर एवं सजीव बना देना हीं कला है। आन्तरिक भावनाओं व कल्पना की अभिव्यक्ति सुन्दर ढंग से करना विभिन्न प्रकार की कलाकृतियाँ बनाना और उनमें विभिन्न प्रकार के रंगो द्वारा तैयार करना हीं चित्रकला कहलाती है।

Contents
चित्रकला की परिभाषाभारतीय चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ1. धार्मिकता2. भावनाओं की अभिव्यक्ति3. प्रतीकों का विस्तृत प्रयोग4. आकृति एवं मुद्राओं का समन्वय5. पात्रों का समन्वय होना6. अलंकरण7. रेखा एवं वेग की प्रधानता

चित्रकला की परिभाषा

“किसी समतल धरातल जैसे भित्ति, काष्ठ फलक आदि रंगों तथा रेखाओं की सहायता से लंबाई, चौड़ाई, गोलाई को अंकित कर किसी रूप आभास कराना चित्रकला है।”

भारतीय चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ

1. धार्मिकता

भारत विविधताओ तथा विभिन्न संस्कृति का एक समूह देश है। यहाँ विभिन्न धर्माें के लोग मिलजुल कर रहते हैं। कला द्वारा ही हर देश में धर्म के व्याख्या किया जाता है जैसे कि हर तीज, त्योहार को कला के माध्यम से जीवन्त करते हैं। भारतीय चित्रकला तथा शिल्प का लगभग 3-4 हजार वर्षों से धर्म से घनिष्ठ सम्बध बना रहा है।

अतः भारतीय चित्रकला में धार्मिक भावनाएँ, प्रतीक, आदर्श रूप प्रतिमाएँ समाई हुई है जिससे भारतीय चित्रकला को एक मौलिक आदर्श रूप मिला जो सांसारिक रूप से सर्वथा लोकप्रिय है। इसी कारण चित्रकला तथा अन्य कलाओं को परम आनन्द का साधन माना दृश्य एवं प्रदर्शनकारी कला के विभिन्न रूप गया है।

2. भावनाओं की अभिव्यक्ति

कला के माध्यम से मानव अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते है। अपनी अतः करण की भावना चित्रो के माध्यम से प्रस्तुत करता है। जिस प्रकार भारतीय योगी ध्यान तथा समाधि की अवस्था को प्राप्त करके बाहरी तथा आन्तरिक प्रकृति अथवा प्रकृति के विस्तीर्ण क्षेत्र का एक स्थान पर बैठकर ही साक्षात्कार कर लेता है इसी प्रकार भारतीय चित्रकार भी एक स्थान से हीं अनेक कालों एवं स्थानों अथवा सृष्टि की विस्तीर्णता को एक साथ ग्रहण करके व्यक्त कर देता है और इस प्रकार उसकी रचना में आकाश, पाताल तथा धरा की कल्पना सभाविष्ट हो जाती है। 

3. प्रतीकों का विस्तृत प्रयोग

कला की भाषा प्रतीकात्मक होती है, पूर्वी देशों की कलाओं में भारतीय कला के समान ही यथार्थ आकृतियों पर आधारित प्रतीक तथा सांकेतिक प्रतीकों का अत्यधिक महत्व है। भारत की कलाओं में  जटाजूट, मुकुट, सिंहासन, चक्र, सत्र, पादुकाएँ, कमल, हाथी आदि को भी भिन्न भिन्न रेखा चित्रों के माध्यम से दर्शाते हैं।

4. आकृति एवं मुद्राओं का समन्वय

भारतीय चित्रकला में  आकृति और मुद्राओं का समन्वय किया गया है। यही कारण है कि अधिकांश भारतीय चित्रकला तथा मूर्तिकला में  आकृतियों के शरीर की रचना में  भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों की आकृतियों तथा उनकी अंग भंगिमाओं एवं  मुद्राओं का विशेष महत्व है। जिसमें सजीवता को दर्शाया जाता है।

5. पात्रों का समन्वय होना

 भारतीय कला में  सामान्य पात्र-विधान परम्परागत रूप में  विकसित किया गया है। सामान्य का अर्थ है आयु, व्यवसाय अथवा पद के अनुसार पात्रों की आकृति के अनुपात का निर्माण करना। राजा, रंक, देवता तथा राक्षस, साधु तथा सेवक स्त्री, गध्ंर्व, शिशु, किशारे , युवक आदि को उनके अंग प्रत्यंग के अनुपातों को निश्चित किया गया है। इतना हीं नहीं उनके आसन और पद चिन्ह भी निश्चित होते हैं। 

6. अलंकरण

 दृश्य एवं प्रदर्शनकारी कला के विभिन्न रूप अलंकरण कला की प्रकृति है अतएव सुन्दर प्रथा आदर्श चित्र निरूपण के लिए अलंकरणों और आकृतियां की रूप श्री का वर्णन करता है, जैसे चन्द्र के समान मुख। 

7. रेखा एवं वेग की प्रधानता

भारतीय चित्रकला में रेखा का प्रयोग किया गया है। इन आकृतियां में सपाट रंगो का प्रयोग किया जाता है।

यह भी पढ़ें :-

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TAGGED:चित्रकलाभारतीय कलाभारतीय चित्रकलाभारतीय शास्त्रीय नृत्यमूर्तिकला
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