14वीं सदी के आसपास यूरोप मे सामंतवाद और चर्च व्यवस्था का बोल बाला था । लेकिन मुद्रा प्रणाली के आरंभ होते ही सामंतवाद कि जगह पूजीवाद ने लेना शुरू कर दिया था । अतः ऐसा माना जाता है कि आधुनिक पश्चिम के उद्भव में व्यापारिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसे “व्यावसायिक क्रांति’ के नाम से जाना गया।
व्यावसायिक क्रांति क्या था ? What was Commercial revolution
व्यावसायिक क्रांति के परिणामस्वरूप यूरोप की क्षेत्रीय, स्थिर एवं सामंती अर्थव्यवस्था वेश्विक, गतिशील एवं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में रूपांतरित हो गई। एक बार फिर व्यापार एवं नगरीय अर्थव्यवस्था का उत्थान हुआ तथा मुद्रा एवं बैंकिंग का विकास हुआ। यह क्रांति यूरोप की सामाजिक और आर्थिक प्रगति का महत्वपूर्ण संवेदनशील पल था और सामाजिक और आर्थिक रूप से जीवन की अनेक पहलुओं पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।
व्यावसायिक क्रांति का मुख्य लक्ष्य व्यापार और व्यवसाय के क्षेत्र में संरचनाओं में सुधार करना और व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा देना था। इस काल में व्यापारी वर्ग की संख्या में वृद्धि हुई तथा व्यापार में धार्मिक तत्वों का व्यापक प्रयोग होने लगा। इस प्रक्रिया में नये व्यापारिक संस्थानों, बाज़ारों और व्यापारी समूहों का विकास हुआ, जिससे व्यापार को एक नये स्तर पर ले जाने में मदद मिली।
व्यावसायिक क्रांति के कारण
यूरोप में व्यावसायिक गतिविधियों के विकास के पीछे कुछ मुख्य कारण थे। जो निम्न है –
कारण 1: तकनीकी विकास
कृषि क्षेत्र में तकनीकी विकास के कारण कृषि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिला तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप एक संपन्न भूमिधारी वर्ग स्थापित हुआ जिसने वस्तुओं की माँग बढ़ा दी।
कारण 2: धर्मयुद्ध
धर्मयुद्ध जैसी विध्व॑ंसात्मक घटना ने भी यूरोप की अर्थव्यवस्था पर संरचनात्मक प्रभाव छोड़ा। जब यूरोप के ईसाई देशों की सेना पूरब से धर्मयुद्ध लड़ने के लिए पश्चिम एशिया के येरूशलम की ओर गई तो इसके साथ ही उत्तरी-पश्चिमी यूरोप और पश्चिमी एशिया के बीच का व्यापारिक मार्ग खुल गया।
कारण 3: कुस्तुनतुनिया का पतन
सबसे बड़ी विध्वंसात्मक घटना सिद्ध हुई कुस्तुनतुनिया का पतन, परंतु यह यूरोप में आधुनिक युग के आगमन का सूचक बन गई। 1453 ई. में ओटोमन तुर्क के अधीन मुस्लिम शक्ति ने पूर्वी रोमन साम्राज्य को पराजित कर उसकी राजधानी कुस्तुनतुनिया पर कब्जा कर लिया। इसके कारण भारत और यूरोप के बीच जितने भी व्यापारिक मार्ग थे, सभी ठप हो गए, जबकि यह वह काल था जब यूरोप में पूरब से आने वाले
मसालों की अत्यधिक माँग थी।
दूसरी तरफ, मुस्लिम शक्ति ने यूरोपीय देशों को उनकी सीमाओं में कैद कर दिया था। परंतु यह भी एक समय था कि जब यूरोप ने अपनी आंतरिक ऊर्जा दिखाते हुए इस चुनौती को स्वीकार किया और वैकल्पिक मार्ग की खोज आरंभ कर दी। इस दिशा में सर्वप्रथम पुर्तगाल और स्पेन ने पहल की और इसी क्रम में कोलम्बस ने 1492 में अमेरिका और वास्कोडिगामा ने 1498 में भारत के वैकल्पिक मार्ग की खोज की।
नए क्षेत्रों की खोज के साथ उन क्षेत्रों में यूरोपीय व्यापार का विस्तार हुआ। इसे व्यावसायिक क्रांति के नाम से जाना गया।
व्यावसायिक क्रांति का प्रभाव
व्यावसायिक क्रांति ने यूरोप में संरचनात्मक परिवर्तन लाया और फिर इस परिवर्तन ने आगे के परिवर्तनों का रास्ता तैयार कर दिया। ये परिवर्तन इस प्रकार हैं –
प्रभाव 1 : सामंतवाद का पतन
सामंतवाद का आर्थिक आधार कृषि दासता तैयार कर रही थी। अतः यह स्पष्ट था कि यदि कृषि दासता का पतन होता, तो सामंती संरचना का भी विघटन हो जाता है। फिर जैसा कि हम देखते हैं कि जब ग्रामीण क्षेत्र में मुद्रा का प्रवेश हुआ तो कृषि दासता टूटने लगी। वस्तुतः सामंतों के द्वारा किसानों को जीवन-यापन करने के लिए थोड़ी सी जमीन दी गई थी और बदले में उन्हें सामंतों की जमीन पर मुफ्त में श्रम देना होता था परंतु अब जब मुद्रा का प्रवेश हुआ तो फिर सामंत और रैयत दोनों मुद्रा की तरफ आकर्षित हो गए।
रैयतों को यह लगा कि अगर थोड़ी सी रकम के बदले सामंत हमें सेवा की शर्तों से मुक्त कर देते हैं तो हम अपने श्रम को बाजार में बेचकर मुनाफा कमा सकते हैं, वहीं सामंतों को भी ऐसा महसूस हुआ कि रैयत उन्हें सेवा के बदले रकम देते, तो बेहतर है। अतः कृषि दासता टूट गई।
प्रभाव 2 : युरोपीय राजतंत्र का उत्थान
सामंतों के उद्भव के कारण राजा की स्थिति कमजोर हो चुकी थी। अब वह पूर्णतः सामंतों पर निर्भर हो गया था, परंतु जब सामंतवाद का पतन हुआ तो यूरोप के महत्वाकांक्षी शासक अपने आप को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करने लगा। इन शासकों में ब्रिटिश शासक हेनरी षष्टम, हेनरी अष्टम, फ्रांस का हेनरी चतुर्थ और आगे प्रशा के फ्रैडरिक द ग्रेट तथा ऑस्ट्रिया के जोसेफ-II आदि प्रमुख थे।
प्रभाव 3 : पूँजीवाद का उद्भव
पूँजीवाद अपने स्वरूप में सामंतवाद से पृथक् था। सामंतवाद का आधार कृषि अर्थव्यवस्था थी, तो पूँजीवाद का आधार व्यापार। उसी प्रकार, सामंतवाद परंपरा तथा व्यक्तिगत वफादारी के आधार पर संचालित होता था, तो पूँजीवाद मुनाफे के आधार पर। इसके अतिरिक्त, सामंतवाद का सामाजिक आधार कूलीन वर्ग एवं चर्च ने तैयार किया, तो पूँजीवाद का आधार मध्यवर्ग ने।
प्रभाव 4 : मध्यवर्ग का उद्भव
मध्यकालीन यूरोपीय समाज तीन भागों में विभाजित था- कुलीन वर्ग, पादरी वर्ग तथा जनसामान्य। परंतु व्यावसायिक क्रांति ने एक नया सामाजिक वर्ग, व्यापारिक वर्ग को जन्म दिया। व्यापारिक वर्ग ने ही आरंभिक मध्यवर्ग का रूप ले लिया। आगे इस वर्ग में अनेक समूह जुड़ते चले गए।
गौर करने वाली बात यह है कि पहले जहाँ यूरोपीय समाज कुलीन वर्ग और पादरी वर्ग के हित से परिचालित हो रहा था, वहीं अब यह मध्य वर्ग के हित से परिचालित होने लगा। चूँकि इस वर्ग के पास आर्थिक क्षमता थी, इसलिए इस वर्ग ने बदलाव को संभव बनाया। थोड़े काल के लिए उभर रहे यूरोपीय राजतंत्र का हित मध्य वर्ग से जुड़ गया।
निष्कर्ष
व्यावसायिक क्रांति को सिर्फ आर्थिक स्तिथि से देखना यह कदापि उचित नहीं होगा क्यूकि इसके पश्चात लोगों को आर्थिक स्तिथि के साथ उसे आजादी कि भी प्राप्ति हुई । अब गरीब मजदूर भी अपनी मन से कोई भी काम का चयन कर सकता था, अपने हिसाब से कही जा सकता है व्यापार कर सकता था । जबकि समांतवादी प्रथा मे रैयातों को बेगारी करने के लिए मजबूर किया जाता था ।
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