इस्लाम का उदय कैसे हुआ (Rise of Islam): अरब क्षेत्र एक विशिष्ट भौगोलिक इकाई था तथा इसके पूर्व में फारस की खाड़ी, पश्चिम में लाल सागर, दक्षिण में अरब सागर और उत्तर में भूमध्य सागर स्थित था। यह मरूस्थलीय क्षेत्र था, केवल मक्का में एक हरित पट्टी उपलब्ध थी जहाँ खेती होती थी। यहाँ विभिन्न जनजातियाँ बसती थी, इन्हें ‘बेदुईन’ कहा जाता था। ये ऊँट पालते थे और हथियारबंद होकर चलते थे तथा प्रायः इनके बीच आपस में संघर्ष होता रहता था। ये अर्द्धसभ्य लोग थे। यहाँ शिक्षा का भी प्रसार नहीं हुआ था। छठी सदी में पूर्वी रोमन साम्राज्य और ससानियन साम्राज्य के बीच संघर्ष के कारण जब फारस की खाड़ी का व्यापारिक मार्ग अवरूद्ध हो गया और फिर व्यापार लाल सागर की ओर मुड़ गया, जिसका फायदा अरब जनजातियों को मिला।
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इस्लाम का उदय
विभिन्न जनजातियाँ अलग-अलग धार्मिक पंथ से जुड़ी थीं। इनमें से कुछ मूर्ति पूजक भी थीं। तभी इस्लाम का उदय मुहम्मद द्वारा एक पैगम्बर के रूप में हुआ और वे 621 ईस्वी से 632 ईस्वी के बीच इस क्षेत्र में एक नये धर्म के प्रसार का प्रयास करते रहे। इसे ‘इस्लाम’ के नाम से जाना गया। इसके अनुयायी मुसलमान कहलाये। पैगम्बर ने यह घोषित किया कि “ईश्वर एक है, वह है अल्लाह और मुहम्मद उसके पैगम्बर (संदेश वाहक) है”।
(एक तरह से अगर देखा जाये तो इस्लाम के द्वारा प्रतिपादित एकश्वरवाद उसी अब्राहमी परम्परा से जुड़ा हुआ है जिससे पहले यहूदी ओर ईसाई जुड़े रहे थे। परन्तु इस्लाम का दृष्टिकोण आगे चलकर इस रूप में कट्टर हो गया कि इसने यह दावा किया कि मुहम्मद ही अन्तिम पेगम्बर है और इनकी वाणी ही सत्य हे अर्थात् अगर पिछले पैगम्बरों का विचार मुहम्मद से टकराता है, तो वह स्वर्य अप्रभावी हो जायेगा।)
इस्लाम का धर्मयुद्ध
पैगम्बर मुहम्मद के एकेश्वरवाद का विचार वहाँ के मूर्ति पूजक और कट्टरपंथियों के लिए कष्टकर बन गया। अतः मक्का में पैगम्बर मुहम्मद पर जानलेवा हमला हुआ। इसलिए वे 622 ईस्वी में मदीना आ गये और मदीना में ही उन्होंने शक्ति अर्जित की तथा 630 ईस्वी में उन्होंने मक्का पर भी कब्जा कर लिया। इस प्रकार, इस्लामी राज्य की स्थापना हुयी तथा मदीना और मक्का उसके दो केन्द्र बने।
(इस्लाम में धर्म पहले है तथा समाज और राज्य उसको पश्चात्। यही समस्या आज इस्लामी राज्य को झेलनी पड़ रही है क्योंकि वहाँ उलेमा और कट्टरपंथी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बंधों पर आधारित राष्ट्रीय सीमा को स्वीकार करने को लिए तैयार नहीं हैं।)
632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद का देहांत हो गया। उनके पश्चात चार आरम्भिक खलीफा हुये। इन्हें निर्वाचित खलीफा कहा गया, ये थे- अबुबक्र, उमर, उस्मान और अली (632-631 ई.)। इस बीच इस्लाम ने एक बडे साम्राज्य का रूप ले लिया। इसने मिस्र, सीरिया, ईरान, इराक आदि पुरानी सभ्यताओं और साम्राज्यों को जीत लिया। 661 ई. में खलीफा का पद वंशानुगत हो गया। पहले उम्मैया वंश (661-750 ई.) के खलीफा और फिर अब्बासी खलीफा स्थापित हुये।
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इस्लाम का विकास
इस बीच स्वयं अरब समुदाय की संरचना तथा इस्लाम का स्वरूप भी बदलने लगा था। इस काल में इस्लाम के अन्तर्गत होने वाले कुछ महत्वपूर्ण विकास को निम्नलिखित रूप में रेखांकित किया जा सकता है –
मक्का और मदीना के छोटे से राज्य से आगे बढ़कर इस्लाम ने एक वृहद् साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। सामान्यतः इस्लाम के प्रसार के लिए तलवार के सिद्धान्त पर बल दिया जाता है, परन्तु सूक्ष्म प रीक्षण करने पर यह ज्ञात होता है कि महज तलवार के आधार पर यह सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती, बल्कि इसमें विचार की शक्ति ने अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मुस्लिम मिल्लत (बन्धुता/समानता ) की अवधारणा ने विभिन्न समुदायों को आकर्षित किया।
अरब क्षेत्र के लोग पहले अर्द्धसभ्य और अशिक्षित थे, परन्तु अपने प्रसार के मध्य वे विश्व की अन्य संस्कृतियों के सम्पर्क में आये, यथा-मिम्र, ईरान, सीरिया और भारत। उन्होंने वहाँ से ज्ञान का संग्रह करने और उस ज्ञान को फैलाने में गहरी रूचि दिखाई। वस्तुतः अब्बासी खलीफाओं के समय बगदाद में एक अनुवाद विभाग स्थापित था तथा भारत समेत दुनिया के अन्य ग्रन्थों, जिनमें प्राचीन यूनानी और रोमन क्लासिकल साहित्य भी शामिल था, का अरबी में अनुवाद किया गया।
पहले अरब जनजाति, मुस्लिम समूह में शामिल हुयी थी फिर पश्चिम एशिया के समुदायों ने इस्लाम कबूल किया। आगे फिर तुर्क और मंगोल भी इसमें शामिल हो गये। अपने प्रसार के क्रम में इस्लाम ने उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया तक अपना प्रसार किया। इस प्रकार, इस्लाम ने पहली ग्लोबल व्यवस्था कायम की जो 7वीं सदी से 15वीं सदी तक चली थी।
इस्लाम का मूल्यांकन
इस्लाम का मूल्यांकन करते हुये इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि एक समय था कि शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में अरब वालों का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। अरब का पुस्तकालय विश्व का सबसे समृद्ध पुस्तकालय रहा था जिसे चँगेज खाँ के पौत्र हलाकू खाँ ने नष्ट कर दिया था। इस कारण यह क्षति मानव जाति की क्षति मानी जाती हे।
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